बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की चुनावी रणनीति ने जिस तरह संगठन, तकनीक और जमीनी समन्वय का बेहतरीन मिश्रण प्रस्तुत किया, उसका असर ताज़ा रुझानों में स्पष्ट दिखाई देता है। नवीनतम ECI डेटा के अनुसार भाजपा 91, जदयू 83, लोजपा (रामविलास) 19 और हम 5 सीटों पर आगे है व रालोमा अभी 4 सीटों पर बढ़त करती हुई दिख रही हैं। जबकि महागठबंधन के प्रमुख घटक—राजद 25 और कांग्रेस 6—सीमित बढ़त के साथ पीछे हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि NDA की महीनों पहले से शुरू हुई तैयारी, मजबूत बूथ मैनेजमेंट और लाभार्थियों तक सीधी पहुँच ने जनसमर्थन को निर्णायक रूप से मजबूत किया।
इस चुनाव की नींव भाजपा के केंद्रीय वार रूम से पड़ी, जहाँ लगभग 300 सदस्य चौबीसों घंटे डेटा विश्लेषण, फीडबैक मॉनिटरिंग और रणनीति निर्माण में जुटे रहे। हर विधानसभा में उम्मीदवार-स्तरीय छोटे वार रूम स्थापित किए गए थे, जो हर 24 घंटे में केंद्रीय इकाई को रिपोर्ट भेजते थे। इन रिपोर्टों के आधार पर लगातार नई रणनीतियाँ और कार्रवाई योजनाएँ तैयार की गईं। यह पूरी प्रणाली केवल सांकेतिक नहीं बल्कि पूरी तरह कार्यात्मक और परिणाम देने वाली साबित हुई, जिसने NDA की चुनावी मशीनरी को एकसमान गति दी। इसी प्रक्रिया में यह निर्णय लिया गया कि व्यापक घर-घर संपर्क और लाभार्थियों की सटीक पहचान अभियान की रीढ़ होंगे।
जून से लेकर सितंबर और इसके बाद प्रत्याशी घोषित होने पर तीसरे चरण में लगभग 146 सीटों पर बड़े पैमाने का संपर्क अभियान चलाया गया। लाभार्थियों—यानी उन परिवारों और व्यक्तियों—पर विशेष ध्यान दिया गया जिन्होंने पिछले वर्षों में योजनाओं का प्रत्यक्ष लाभ पाया था। संदेश साफ था कि NDA के समर्थन को सिर्फ बनाए रखना नहीं बल्कि उसे व्यापक बनाना है। इसी के तहत मतदान दिवस पर भी तकनीक का व्यापक उपयोग हुआ। बूथ लेवल एजेंट्स ऐप के माध्यम से हर घंटे उन समर्थक मतदाताओं की सूची भेजते थे जो अभी तक मतदान केंद्र नहीं पहुंचे थे। इससे कार्यकर्ताओं को समय रहते सक्रिय होने और बूथ प्रबंधन को सटीक दिशा देने में मदद मिली।
महिला मतदाता इस चुनाव का सबसे प्रभावी वर्ग बनकर उभरा। पिछले वर्षों में लागू हुई कई योजनाओं के प्रति संतुष्टि के साथ-साथ रोजगार और अतिरिक्त आर्थिक अवसरों की आवश्यकता भी स्पष्ट रूप से सामने आई। इसी फीडबैक के आधार पर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना ने महिलाओं के बीच सकारात्मक माहौल बनाया। सितंबर और अक्टूबर में एक करोड़ से अधिक महिलाओं के खाते में ₹10,000 की सीधी सहायता राशि भेजी गई, और चुनाव बाद ₹2 लाख तक का लोन उपलब्ध कराने की घोषणा ने महिलाओं में उम्मीद और भरोसा दोनों बढ़ाया। यह पहल न केवल आर्थिक सहायता थी बल्कि विश्वास निर्माण की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा भी बनी।
दूसरी ओर, महागठबंधन इस चुनाव में अपना राजनीतिक संदेश व्यापक स्तर पर स्थापित करने में अपेक्षित गति नहीं ला सका। यह एक विश्लेषणात्मक तथ्य है कि जिन मुद्दों पर वह पहले चुनावी विमर्श को आकार देता था, वे इस बार मतदाताओं की नई आकांक्षाओं—रोजगार, विकास और स्थिर प्रशासन—से मेल नहीं खा सके। राजद और कांग्रेस दोनों के सामने संगठनात्मक मजबूती और स्पष्ट राज्य-स्तरीय दृष्टि प्रस्तुत करने की चुनौती थी, जिन क्षेत्रों में वे इस चुनाव में सीमित प्रभाव छोड़ सके। यह आलोचना नहीं बल्कि एक तथ्यात्मक मूल्यांकन है कि नई पीढ़ी के मतदाताओं की प्राथमिकताएँ अब विकास-आधारित राजनीति की ओर झुक रही हैं।
उधर, NDA ने जातीय संतुलन की अपनी पारंपरिक समझ को इस बार और सूक्ष्म रूप से लागू किया। भाजपा ने कई महीने पहले सभी 243 सीटों के जातीय समीकरणों का विश्लेषण किया और यह सुनिश्चित किया कि चाहे कोई सीट सहयोगी दल के खाते में गई हो, उम्मीदवार चयन में प्रमुख सामाजिक समूहों का संतुलन बनाए रखा जाए। पार्टी सूत्रों के अनुसार लगभग 95% सीटों पर यह फार्मूला सफलतापूर्वक लागू हुआ। साथ ही, 2020 की तुलना में इस बार सहयोगी दलों—खासकर लोजपा (रामविलास)—के साथ तालमेल कहीं अधिक सहज रहा, जिसने NDA वोट बैंक को और एकजुट किया। विभिन्न क्षेत्रों में पैन-इंडिया नेतृत्व की तैनाती और वोट समूहों को साधने के लिए की गई कैडर मीटिंग्स ने भी सकारात्मक भूमिका निभाई।
ग्राम्य बिहार में, जहाँ बड़े बुनियादी ढाँचा प्रोजेक्टों का प्रत्यक्ष लाभ अभी सीमित रूप से पहुँचा है, NDA ने अपनी रणनीति बुनियादी कल्याणकारी योजनाओं—राशन, DBT, गैस कनेक्शन, त्वरित सहायता—पर केंद्रित रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘वेलफेयर के साथ जवाबदेही’ का संदेश बार-बार दोहराया गया। इससे ऐसे मतदाताओं में भरोसा बढ़ा जिन्होंने पिछले वर्षों में योजनाओं से सीधा लाभ महसूस किया।
अंततः, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की संयुक्त नेतृत्व छवि ने पूरे चुनाव में स्थिरता और सुशासन का प्रतीक बनकर काम किया। मतदाताओं में यह धारणा मजबूत रही कि यह नेतृत्व मॉडल भरोसेमंद है और अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी विकास और स्थिरता दोनों प्रदान कर सकता है। यही कारण है कि NDA की संगठनात्मक मजबूती, लाभार्थी-केन्द्रित रणनीति और नेतृत्व की विश्वसनीयता ने मिलकर 2025 के इस चुनाव को गठबंधन के पक्ष में निर्णायक रूप से मोड़ दिया।