भारत ने अपने 15वें उपराष्ट्रपति का चुनाव कर लिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने विपक्षी इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को सीधे मुकाबले में 152 वोटों से हराकर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह जीत केवल संख्याओं का खेल नहीं बल्कि एनडीए की राजनीतिक विश्वसनीयता और सामाजिक समावेशिता का प्रमाण है।
निर्णायक जीत
कुल 781 सांसदों में से 767 ने मतदान किया। इनमें से 15 वोट रद्द हो गए। अंतिम नतीजों में 452 वोट राधाकृष्णन को और 300 वोट सुदर्शन रेड्डी को मिले। यह परिणाम विपक्ष की अपील को पूरी तरह नकारते हुए क्रॉस वोटिंग का संकेत देता है। एनडीए को अपनी अपेक्षित संख्या से अधिक वोट मिले।
लंबा सार्वजनिक जीवन और सेवाभाव
4 मई 1957 को जन्मे चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन 16 वर्ष की उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जनसंघ से जुड़े रहे। वे भाजपा के तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और कोयंबटूर से दो बार लोकसभा सांसद रहे।
उन्होंने अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष, झारखंड के राज्यपाल और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भी अपनी प्रशासनिक दक्षता दिखाई है।
जातीय और सामाजिक प्रतिनिधित्व
राधाकृष्णन ओबीसी गौंडर समुदाय से आते हैं। यह समुदाय दक्षिण भारत में प्रभावशाली माना जाता है। उनकी जीत से स्पष्ट है कि एनडीए विभिन्न सामाजिक और जातीय समूहों को प्रतिनिधित्व देकर राष्ट्रीय स्तर पर एक समावेशी नेतृत्व प्रस्तुत कर रहा है।
एनडीए नेतृत्व और व्यापक समर्थन
राधाकृष्णन की जीत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की ताकत और एकजुटता को मजबूत किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें जीत की शुभकामनाएँ दीं और इसे देश के लिए गौरव का क्षण बताया।
निष्कर्ष
सी.पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना भारतीय लोकतंत्र की समावेशी शक्ति का प्रतीक है। ओबीसी पृष्ठभूमि से आने वाले इस नेता की लंबी राजनीतिक यात्रा, संगठनात्मक क्षमता और साफ-सुथरी छवि उन्हें इस पद के लिए आदर्श बनाती है। एनडीए की यह जीत दर्शाती है कि गठबंधन स्थिरता, विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में देश को आगे बढ़ा रहा है।