Science and Technology

माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट तकनीक का सफल परीक्षण

नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने मध्यम दूरी के माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (MR-MOCR) को भारतीय नौसेना (Indian Navy)को सौंपा।  माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ (MOC) को डीआरडीओ (DRDO) की रक्षा प्रयोगशाला, जोधपुर (Jodhpur) ने विकसित किया है। यह तकनीक (Technic) रडार संकेतों को अस्पष्ट करने के साथ - साथ प्लेटफार्मों व परिसंपत्तियों के चारों ओर माइक्रोवेव शील्ड बनाती है और इस तरह से रडार की पकड़ में आने की सम्भावना को कम करती है।

मध्यम दूरी के इस चैफ रॉकेट में कुछ माइक्रोन के व्यास एवं अद्वितीय माइक्रोवेव आरोपण गुणों के साथ विशेष प्रकार के फाइबर का उपयोग किया गया है। इस रॉकेट को पर्याप्त क्षेत्र में फैले अंतरिक्ष में दागे जाने पर यह पर्याप्त समय के लिए माइक्रोवेव अस्पष्ट बादल बनाता है। इस तरह से रेडियो फ्रीक्वेंसी पकड़ने वाले शत्रुतापूर्ण खतरों के विरुद्ध यह एक प्रभावी कवच को निर्मित करता है।

भारतीय नौसेना (Indian Navy) के जहाजों से एमआर-एमओसीआर (MR-MOCR) के पहले चरण के परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया था।  इस दौरान एमओसी क्लाउड खिला रहने सहित अंतरिक्ष में लगातार बना रहा।  वहीं दूसरे चरण के परीक्षणों के तहत रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) द्वारा हवाई लक्ष्य को 90 % तक कम करने का प्रदर्शन किया गया तथा भारतीय नौसेना की तरफ से इसे स्वीकृत किया गया। सभी तरह की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले प्रत्येक एमआर-एमओसीआर (MR-MOCR) को सफलतापूर्वक भारतीय नौसेना (Indian Navy) को सौंप दिया गया है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Union Defence Minister Rajnath Singh) ने  मध्यम दूरी के माइक्रोवेव ऑब्स्क्यूरेंट चैफ रॉकेट (MR-MOCR) के सफलतापूर्वक परिक्षण के तहत डीआरडीओ (DRDO) एवं भारतीय नौसेना की सराहना की। उनके अनुसार एमओसी (MOC) तकनीक रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव व डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ समीर वी कामत ने एमआर-एमओसीआर (MR-MOCR) को भारतीय नौसेना के नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक (DGNAI) रियर एडमिरल बृजेश वशिष्ठ को सौंपा। डीआरडीओ (DRDO)के अध्यक्ष डॉ समीर वी कामत और नौसेना आयुध निरीक्षण महानिदेशक (DGNAI) रियर एडमिरल बृजेश वशिष्ठ ने कम समय में इस तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए डीआरडीओ (DRDO) के प्रयासों की सराहना की।

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