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वोटिंग प्रतिशत ने बदली बिहार की सियासत

दो चरणों में रिकॉर्ड मतदान के बीच महिलाओं के भरोसे, एनडीए के संगठित प्रचार और नई पार्टियों की एंट्री से बिहार की सियासत में नया मोड़ देखने को मिल रहा हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सियासी मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प हो गया है। दो चरणों में हुए मतदान में जनता ने जमकर हिस्सा लिया — पहले चरण में 65.08% और दूसरे चरण में 69.12% मतदान दर्ज हुआ। इस बार महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी, नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित योजनाएं और भाजपा का संगठित प्रचार एनडीए के लिए निर्णायक कारक बनकर उभरे हैं। लगभग सभी एग्जिट पोल्स में एनडीए को स्पष्ट बहुमत दिखाया गया है। ‘दैनिक भास्कर’, ‘मैट्रिज-IANS’, ‘पीपुल्स पल्स’ और ‘टीआईएफ रिसर्च’ जैसे सर्वेक्षणों के मुताबिक एनडीए को 145 से 167 सीटों के बीच, जबकि महागठबंधन को 70 से 100 सीटों के बीच सीटें मिलने का अनुमान है। पोल ऑफ पोल्स के औसत के अनुसार एनडीए को 154 और महागठबंधन को 84 सीटें मिल सकती हैं।

एनडीए गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और लोक जनशक्ति पार्टी शामिल हैं। वहीं महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी प्रमुख घटक हैं।

इसके अलावा, इस चुनाव में दो नई राजनीतिक ताकतों ने भी मुकाबले को रोचक बना दिया है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने इस बार सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। पीके ने दावा किया था कि वह महिलाओं को 40% टिकट देंगे, हालांकि पार्टी ने अंततः 25 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। दूसरी ओर, तेज प्रताप यादव ने अपने भाई तेजस्वी यादव से अलग होकर नई पार्टी जनशक्ति जनता दल बनाकर चुनाव लड़ा, जिससे महागठबंधन के पारंपरिक यादव वोट बैंक में हलचल देखने को मिली। इन दोनों नई पार्टियों ने कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति पैदा की है।

महिलाओं की निर्णायक भूमिका इस चुनाव की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी बन गई है। नीतीश कुमार की सरकार ने अगस्त 2025 में महिला रोजगार योजना शुरू की थी, जिसके तहत 1.21 करोड़ महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये की पहली किस्त जमा कराई गई। इसके साथ ही वृद्धा और विधवा पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 की गई और सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया। इन योजनाओं ने महिलाओं में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ाया और एंटी-इनकंबेंसी को कमजोर किया।

भाजपा ने अपने संगठित प्रचार अभियान से एनडीए को बढ़त दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने पूरे राज्य में रैलियों का सिलसिला चलाया। मोदी की रैलियों में महिलाओं और युवाओं की उपस्थिति सबसे अधिक रही। भाजपा ने केंद्र की योजनाओं — उज्ज्वला गैस योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, हर घर नल-जल, फ्री राशन और किसान सम्मान निधि — को अपने प्रचार का मुख्य आधार बनाया। साथ ही, भाजपा ने स्थानीय मुद्दों जैसे सड़क, बिजली, और कानून व्यवस्था पर भी जोर दिया।

एनडीए ने इस बार टिकट वितरण में भी महिलाओं को प्राथमिकता दी। भाजपा और जेडीयू ने 13-13 महिला उम्मीदवार, जबकि गठबंधन ने कुल 34 महिलाओं को टिकट दिया। महागठबंधन ने 30 महिला प्रत्याशियों को उतारा — जिनमें राजद की 24 और कांग्रेस की 5 महिलाएं शामिल हैं। महिला प्रतिनिधित्व का यह मुकाबला बिहार की राजनीति में नए बदलाव का संकेत है।

विपक्ष की ओर से तेजस्वी यादव ने रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया, जबकि जनसुराज और जनशक्ति जनता दल जैसी नई पार्टियों ने “सिस्टम में बदलाव” और “जनभागीदारी” के एजेंडे को प्रचारित किया। इसके बावजूद एनडीए की “विकास और विश्वास” रणनीति ज़्यादा प्रभावी साबित होती दिख रही है।

अब 14 नवंबर को जब नतीजे आएंगे, तो यह तय होगा कि क्या महिलाओं के भरोसे और भाजपा के डबल इंजन प्रचार के साथ नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में लौटेंगे, या नई पार्टियों का यह प्रयोग बिहार की राजनीति में कोई नया अध्याय खोलेगा।

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