बिहार की राजनीति में नए साल के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं अपने चरम पर हैं, जहां खरमास खत्म होते ही नीतीश सरकार का कुनबा बढ़ने की पूरी संभावना है।
वर्तमान नियमों के अनुसार राज्य में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं और एनडीए के भीतर तय हुए शक्ति संतुलन के फॉर्मूले के तहत भाजपा के हिस्से में 17, जदयू के पास मुख्यमंत्री सहित 15, लोजपा (रा) को 2, जबकि हम और रालोमा को 1-1 मंत्री पद आवंटित किए गए हैं। इसी गणित के आधार पर कैबिनेट में खाली पड़ी 10 सीटों को भरने के लिए जदयू से 6 और भाजपा से 4 नए नेताओं को शपथ दिलाई जा सकती है। भाजपा की ओर से इस बार जातिगत समीकरणों और क्षेत्रीय प्रभाव को काफी महत्व दिया जा रहा है, जिसमें झंझारपुर से पांचवीं बार जीते नीतीश मिश्रा, पटना की दीघा सीट से प्रभावी जीत दर्ज करने वाले संजीव चौरसिया और शीर्ष नेतृत्व के करीबी माने जाने वाले विधान परिषद सदस्य संजय मयूख के नाम चर्चा में सबसे आगे हैं। इनके अलावा बेगूसराय के तेघड़ा से वामपंथी किले को ढहाने वाले रजनीश कुमार और राजपूत समाज के कद्दावर नेता नीरज कुमार बबलू को भी मंत्री पद की रेस में प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
दूसरी तरफ, जदयू अपने कोटे से पुराने अनुभवी मंत्रियों को वापस लाने के साथ-साथ कुछ प्रभावशाली नए चेहरों को भी मौका देने की तैयारी में है। पूर्व मंत्री महेश्वर हजारी, चौथी बार के विधायक रत्नेश सदा, बांका के अमरपुर से जीतने वाले जयंत राज और मधुबनी की शीला कुमारी जैसे चेहरों को दोबारा बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। इनके साथ ही नए नामों में जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है, जो वैशाली के महनार से विधायक हैं। ललन सिंह के करीबी माने जाने वाले जमालपुर के विधायक नचिकेता मंडल और केसरिया से लगातार दूसरी बार जीतीं शालिनी मिश्रा के नाम भी इस सूची में प्रमुखता से शामिल हैं। बजट सत्र 2026-27 के दबाव को देखते हुए मुख्यमंत्री जल्द ही विभागों का बंटवारा कर काम में तेजी लाना चाहते हैं। माना जा रहा है कि 15 से 20 फरवरी के बीच इस विस्तार की औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी, जिससे न केवल शासन व्यवस्था सुधरेगी बल्कि गठबंधन के भीतर सामाजिक संतुलन को भी और मजबूती मिलेगी।