सीट बंटवारे की राजनीति में उलझा महागठबंधन

सीट शेयरिंग और डिप्टी सीएम की मांग पर अड़े सहयोगी दल, महागठबंधन की एकता पर मंडराया 'फ्रेंडली कॉन्टेस्ट' का खतरा।
सीट बंटवारे की राजनीति में उलझा महागठबंधन
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा के बाद महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अंदरूनी खींचतान तेज हो गई है। बाहर से एकता का दावा करने वाले नेता दरअसल अंदर गहराते मतभेदों से जूझ रहे हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुई लगातार बैठकों के बावजूद सीट बंटवारे और डिप्टी सीएम के मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई है।

तेजस्वी के घर पर मैराथन बैठकें, लेकिन नतीजा शून्य

5 से 7 अक्टूबर के बीच तेजस्वी यादव के आवास पर छह बैठकें हुईं। तीन दिन तक चली चर्चाओं में आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और वीआईपी के नेताओं ने सीट बंटवारे और नेतृत्व पर बात की, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल सका। तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित करने पर सब सहमत हैं, मगर कांग्रेस अपने सीएम फेस को लेकर चुप नहीं बैठी है।

वीआईपी की जिद: डिप्टी सीएम या कुछ नहीं

वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी 30 सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग पर अड़े हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि सीटें घटाई जा सकती हैं, लेकिन डिप्टी सीएम पद की गारंटी चाहिए। पार्टी के पास न कोई विधायक है, न सांसद, फिर भी वीआईपी की यह मांग गठबंधन में असंतोष बढ़ा रही है।

माले का सख्त रुख: “हमारी ताकत को कम मत आंकिए

भाकपा-माले ने 2020 में 19 सीटों पर लड़कर 12 जीती थीं, यानी सबसे बेहतर 63% की स्ट्राइक रेट। अब पार्टी 35-40 सीटों की मांग कर रही है। माले का कहना है कि वे गठबंधन की जीत को मजबूत करने के लिए मैदान में हैं, पर अपनी राजनीतिक गरिमा से समझौता नहीं करेंगे।

कांग्रेस की दुविधा और सीटों की होड़

कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर लड़ी और केवल 19 जीत पाई थी। आरजेडी उसे अब 50-55 सीटें देना चाहती है, लेकिन कांग्रेस 70-75 सीटों की मांग पर अड़ी है। पार्टी ने तीन डिप्टी सीएम का फार्मूला भी पेश किया है — एक दलित, एक अति पिछड़ा और एक मुस्लिम चेहरा — जिससे विवाद और बढ़ गया है।

छोटे सहयोगियों की बड़ी मांगें

झामुमो ने बॉर्डर की 12 सीटों की मांग की है, जबकि पारस की रालोजपा को चार सीटें देने पर चर्चा है। आरजेडी 135 से नीचे नहीं जाना चाहती, लेकिन सहयोगियों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। इससे सीटों का गणित और जटिल हो गया है।

फ्रेंडली कॉन्टेस्टकी आशंका

अगर समझौता जल्द नहीं हुआ, तो कई सीटों पर महागठबंधन के दल आपस में भिड़ सकते हैं। इसे “फ्रेंडली कॉन्टेस्ट” कहा जा रहा है, लेकिन यह गठबंधन के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।

तेजस्वी की सबसे बड़ी परीक्षा

महागठबंधन की एकजुटता बनाए रखना अब तेजस्वी यादव के नेतृत्व की सबसे कठिन परीक्षा बन गई है। कांग्रेस की सीटों की चाह, माले की दृढ़ता, वीआईपी की डिप्टी सीएम की जिद और छोटे दलों का दबाव — इन सबके बीच तेजस्वी को ऐसा संतुलन बनाना होगा जो न सिर्फ सीटों का गणित सुलझाए, बल्कि गठबंधन की एकता भी बचाए।


बिहार महागठबंधन इस समय “सीटों की राजनीति” के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। अगर अंदरूनी मतभेद नहीं सुलझे, तो यह एकता चुनावी अखाड़े में टिक नहीं पाएगी। तेजस्वी के लिए यह सिर्फ सीट बंटवारे की नहीं, बल्कि नेतृत्व की कसौटी का भी समय है।

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