
देश की सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपने प्रशासनिक तंत्र में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों के लिए आरक्षण नीति को औपचारिक रूप से लागू कर दिया है। यह पहली बार है जब शीर्ष अदालत में अधिकारियों और कर्मियों की सीधी भर्ती में एससी और एसटी वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने अब नियुक्तियों में 200 बिंदु आधारित रोस्टर प्रणाली को अपनाया है, जो केंद्र सरकार द्वारा 2 जुलाई 1997 को आरक्षण नीति के तहत तय दिशा-निर्देशों पर आधारित है। यद्यपि यह व्यवस्था केंद्र सरकार के अधीन विभागों में वर्षों से लागू थी, सुप्रीम कोर्ट ने इसे करीब 28 साल बाद अपने प्रशासनिक ढांचे में शामिल किया है। यह निर्णय न्यायिक संस्थानों में वंचित वर्गों की भागीदारी को बढ़ावा देने वाला एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
23 जून 2025 से प्रभावी इस नई व्यवस्था के तहत वरिष्ठ निजी सहायक, सहायक लाइब्रेरियन, जूनियर कोर्ट सहायक, जूनियर कोर्ट सहायक सह जूनियर प्रोग्रामर, जूनियर कोर्ट अटेंडेंट और चैंबर अटेंडेंट (आर) जैसे पदों पर सीधी भर्तियों में आरक्षण दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार प्रदीप वाई. लाडेकर द्वारा जारी अधिसूचना में एससी वर्ग के लिए 15% और एसटी वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।
यह फैसला न केवल सुप्रीम कोर्ट के भीतर संरचनात्मक विविधता बढ़ाने वाला है, बल्कि इससे न्यायिक संस्थानों में सामाजिक न्याय की अवधारणा को भी मजबूती मिलेगी। इसे न्यायिक प्रशासन में समान अवसर की दिशा में एक बड़ा सुधार माना जा रहा है। यह पहल इस बात का संकेत है कि अब देश के सर्वोच्च संस्थान भी सामाजिक समावेश और संवैधानिक मूल्यों को लेकर अधिक सजग हो रहे हैं।
इस निर्णय को देशभर में व्यापक रूप से सराहा जा रहा है और इसे उन वंचित वर्गों के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है, जिन्हें दशकों से न्याय व्यवस्था में प्रतिनिधित्व की अपेक्षा थी।