बिहार विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, जिसका सीधा असर वर्ष 2026 में होने वाले राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों पर पड़ेगा। अप्रैल, जून और नवंबर 2026 में 72 सीटों पर होने वाले इन चुनावों में विधानसभाओं में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण उसकी सीटें घटने की प्रबल आशंका है। इसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा, जिससे उच्च सदन में उसका संख्याबल और मजबूत हो सकता है।
2026 में कांग्रेस की कुछ सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ दिग्विजय सिंह, शक्ति सिंह गोहिल, और रजनी पाटिल जैसे कद्दावर नेताओं की सीटें शामिल हैं। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी भी तेलंगाना से रिटायर होंगे। कांग्रेस शासित कर्नाटक से खरगे को दोबारा मौका मिल सकता है, लेकिन अन्य राज्यों में कम विधायक होने के कारण पार्टी को इन नेताओं को दोबारा राज्यसभा भेजना मुश्किल होगा। अगर कांग्रेस का संख्याबल और घटता है, तो इससे उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर भी संकट आ सकता है।
बिहार से पाँच राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, जिनमें राजद के प्रेमचंद गुप्ता और एडी सिंह शामिल हैं। विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद, राजद के लिए ये सीटें बचाना कठिन होगा। एक सीट जीतने के लिए आवश्यक विधायकों की संख्या 42 से बढ़कर लगभग 48 तक हो सकती है, जो महागठबंधन के समीकरणों को और बिगाड़ेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनाव तक राज्यसभा से RJD का प्रतिनिधित्व समाप्त होने का खतरा है।
इसके अलावा, महाराष्ट्र से शरद पवार (NCP-SP) और रामदास आठवले की सीटें, तथा कर्नाटक से पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा (JDS) की सीटें भी इसी अवधि में खाली हो रही हैं।
कुल मिलाकर, 2026 का राज्यसभा चुनाव कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती है, जहां उन्हें उच्च सदन में अपनी उपस्थिति और राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा।