
भारत और यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के बीच नया व्यापार समझौता 1 अक्टूबर से लागू होगा।इस समझौते का लक्ष्य व्यापार को बढ़ावा देना और सतत विकास को सुनिश्चित करना है। यह समझौता भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इसमें आर्थिक सहयोग और विकास को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया गया है।
यह समझौता एक ऐतिहासिक पल है, क्योंकि भारत ने पहली बार किसी मुक्त व्यापार समझौते में व्यापार और सतत विकास के कानूनी प्रावधानों को शामिल किया है। EFTA समूह में आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड शामिल हैं। दोनों पक्षों ने इसी साल 10 मार्च को "ट्रेड एंड इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (TEPA)" पर हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौते के तहत, EFTA (यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन) देश अगले 15 सालों में भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करेंगे। इससे भारत में लगभग 10 लाख प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और रोजगार में वृद्धि होगी।
इसके साथ ही, यह समझौता कई भारतीय उत्पादों जैसे स्विट्जरलैंड में बनी घड़ियों, चॉकलेट और कटे-पॉलिश किए गए हीरों पर सीमा शुल्क को कम या पूरी तरह खत्म कर देगा। इससे भारतीय उत्पादों को EFTA देशों के बाजारों में आसानी से जगह मिलेगी और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
स्विट्जरलैंड ने इस समझौते को व्यापार संबंधों में कानूनी निश्चितता बढ़ाने वाला कदम बताया है। यह दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाएगा और EFTA देशों की कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में अपने उत्पादों और सेवाओं को बेचना आसान हो जाएगा।
सतत विकास और भविष्य की दिशा
इस समझौते की सबसे खास बात यह है कि यह व्यापार और सतत विकास दोनों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित करता है। यह पहला ऐसा व्यापार समझौता है जिसमें भारत ने व्यापार के साथ-साथ सतत विकास के लक्ष्यों को भी कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया है।
यह समझौता न केवल आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि भविष्य में होने वाले व्यापार समझौतों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा। भारत के लिए यह एक बड़ा कदम है जो वैश्विक व्यापार में उसकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। यह समझौता भारत को एक प्रमुख व्यापारिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा, जो निवेश, रोजगार और निर्यात को बढ़ावा देगा।