छठा राष्ट्रीय जल पुरस्कार और जल संचय-जनभागीदारी पुरस्कार

राष्ट्रपति मुर्मू ने ‘सुजलम’ विरासत का उल्लेख कर राष्ट्रीय जल एवं जन भागीदारी पुरस्कार प्रदान किए।
छठा राष्ट्रीय जल पुरस्कार और जल संचय-जनभागीदारी पुरस्कार
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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में आयोजित छठे राष्ट्रीय जल पुरस्कार एवं जल संचय–जन भागीदारी पुरस्कार कार्यक्रम में जल संरक्षण के महत्व पर विस्तृत रूप से अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता का इतिहास ही जल के इर्द-गिर्द बसा इतिहास है—नदियों, झीलों और जलस्रोतों के किनारे बसकर ही समाजों ने प्रगति का मार्ग तय किया है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में जल का स्थान अतुलनीय है। हमारे राष्ट्रीय गीत का पहला शब्द “सुजलाम” बताता है कि पानी हमारे जीवन और राष्ट्रीय पहचान के केंद्र में है।

राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि आज जल का कुशल उपयोग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए अनिवार्य है। भारत में जनसंख्या के अनुपात में जल संसाधन सीमित हैं, इसलिए प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता एक गंभीर चुनौती है। इस पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जल चक्र को और भी असंतुलित बना रहा है। ऐसे समय में सरकार और समाज दोनों को मिलकर जल सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

उन्होंने जल संचय–जन भागीदारी पहल की सराहना की जिसके तहत एक वर्ष में ही 35 लाख से अधिक भू-जल पुनर्भरण संरचनाएँ तैयार की गईं। यह इस बात का प्रमाण है कि जनभागीदारी के माध्यम से हम बड़े स्तर पर जल संरक्षण को सफल बना सकते हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू ने उद्योगों द्वारा अपनाए जा रहे सर्कुलर वॉटर इकोनॉमी मॉडल की भी प्रशंसा की। कई इकाइयाँ जल उपचार और पुनर्चक्रण द्वारा ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज लक्ष्य तक पहुँच चुकी हैं। यह प्रयास जल प्रबंधन के लिए अत्यंत प्रभावी और प्रेरणादायक हैं। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों, जिला प्रशासन, ग्राम पंचायतों और नगर निकायों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक समूहों तक सभी के समन्वित प्रयासों पर जोर दिया।

कृषि और उद्योग क्षेत्रों को सलाह देते हुए उन्होंने कम पानी में अधिक उत्पादन जैसे नवाचार अपनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि जल समृद्धि की इस श्रृंखला में प्रत्येक नागरिक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। आदिवासी समुदायों का उदाहरण देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान की भावना हर भारतीय के जीवन का हिस्सा होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब हम पानी का उपयोग करें, तो याद रखें कि यह एक अनमोल संपत्ति है—इसे बचाना और सही ढंग से उपयोग करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। घर-घर तक जल जागरूकता पहुँचाना और इसे सामूहिक आदत बनाना समय की मांग है।

राष्ट्रीय जल पुरस्कार और JSJB पहल का उद्देश्य भी यही है—जनता को जागरूक करना, जल संरक्षण के सफल मॉडल तैयार करना, और सामुदायिक प्रयासों द्वारा जल संकट का स्थायी समाधान खोजना।

अंततः राष्ट्रपति ने संदेश दिया कि जल केवल सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि जनता की सहभागिता से ही संरक्षित और सुरक्षित रह सकता है। जल संरक्षण एक सामूहिक संकल्प है—और इस संकल्प से ही भारत का भविष्य “सुजलाम” बन सकता है।

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