

अंतरिक्ष की दुनिया में अब केवल रॉकेट की गति और तकनीक ही नहीं, बल्कि इंसानी शरीर की मजबूती पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। चंद्रमा के पास बनने वाले 'लूनर गेटवे' स्टेशन का आकार पृथ्वी के पुराने स्पेस स्टेशनों की तुलना में काफी छोटा होगा, इसलिए वहां भारी-भरकम जिम उपकरण ले जाना संभव नहीं था। इसी समस्या के समाधान के रूप में 'E4D' और 'T2 ट्रेडमिल' जैसे उपकरणों को खास तौर पर डिजाइन किया गया है। ये मशीनें इतनी उन्नत हैं कि एक ही छोटे से स्थान पर यात्री वजन उठाने से लेकर साइकिलिंग, रोइंग और दौड़ने तक का अभ्यास एक साथ कर सकते हैं। शून्य गुरुत्वाकर्षण वाले माहौल में शरीर की हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और मांसपेशियां तेजी से कमजोर पड़ जाती हैं, ऐसे में यह तकनीक यात्रियों को पृथ्वी जैसी फिटनेस प्रदान करने में मदद करेगी।
इस पूरे नवाचार का एक मुख्य पहलू संसाधनों का सटीक प्रबंधन भी है। अंतरिक्ष में भोजन और रसद पहुंचाना बेहद महंगा और चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। चूंकि व्यायाम करने से शरीर की कैलोरी खर्च होती है और ज्यादा भूख लगती है, इसलिए इन नई मशीनों को इस तरह तैयार किया गया है कि ये शरीर पर प्रभावी दबाव तो डालें, लेकिन ऊर्जा की खपत को एक संतुलित स्तर पर रखें। इससे अंतरिक्ष यात्रियों के भोजन का स्टॉक लंबे समय तक चल सकेगा। आर्टेमिस मिशन के दौरान यह पोर्टेबल जिम न केवल समय की बचत करेगा, बल्कि मशीनों के घिसाव को भी कम करेगा। यह तकनीक भविष्य में मंगल ग्रह की लंबी यात्राओं के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर रही है, जहाँ यात्रियों को महीनों तक बिना किसी बाहरी मदद के खुद को फिट रखना होगा।
चंद्रमा और मंगल जैसे गहरे अंतरिक्ष मिशनों की सफलता पूरी तरह से अंतरिक्ष यात्रियों की शारीरिक और मानसिक क्षमता पर टिकी है। सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के खतरनाक प्रभावों से निपटने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा का यह संयुक्त प्रयास दिखाता है कि कैसे आधुनिक इंजीनियरिंग के जरिए हम सीमित स्थान और संसाधनों में भी मानव शरीर को सुरक्षित रख सकते हैं। यह छोटा सा स्पेस जिम भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होने वाला है।