EUV तकनीक की दौड़ में चीन की एंट्री

अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच चीन ने तैयार किया स्वदेशी EUV मशीन का प्रोटोटाइप।
EUV तकनीक की दौड़ में चीन की एंट्री
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में वैश्विक प्रभुत्व जमाने के लिए चीन ने अपनी तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। अमेरिका द्वारा उन्नत चिप्स और मशीनों के निर्यात पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के जवाब में चीन ने 'मैनहैटन प्रोजेक्ट' की तर्ज पर एक हाई-सिक्योरिटी नेशनल प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसका लक्ष्य 2026 तक चिप उत्पादन को तीन गुना करना और 2028 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर होना है। वर्तमान दौर में तकनीक के जानकारों का मानना है कि भविष्य में उसी देश का दबदबा होगा जो AI और सेमीकंडक्टर निर्माण में महारत हासिल करेगा। इसी रणनीति को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्नत चिप निर्माण को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल किया है।

अमेरिकी प्रतिबंधों ने चीन को अपनी घरेलू क्षमताओं को विकसित करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप चीन ने शेन्ज़ेन की एक हाई-सिक्योरिटी लैब में एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट (EUV) लाइट सोर्स टेक्नोलॉजी का प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है। यह वह तकनीक है जो मानव बाल से हजारों गुना पतले ट्रांजिस्टर बनाने में सक्षम है और अब तक इस पर नीदरलैंड की कंपनी ASML का एकाधिकार था। इस महात्वाकांक्षी परियोजना को पश्चिमी मीडिया में चीन का ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ कहा जा रहा है, क्योंकि यह सीधे तौर पर चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी संप्रभुता से जुड़ा है। चीनी टेक दिग्गज कंपनी 'हुआवेई' इस पूरी सप्लाई चेन का समन्वय कर रही है, जबकि 'SMIC' जैसी बड़ी कंपनियां उन्नत मशीनों का परीक्षण कर रही हैं।

हुआवेई ने अपनी 'Ascend' सीरीज के माध्यम से पहले ही ऐसे चिप्स का उत्पादन शुरू कर दिया है, जो प्रदर्शन के मामले में अमेरिकी कंपनी Nvidia के समकक्ष माने जाते हैं। इसके साथ ही चांगचुन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्टिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्वदेशी मशीनों के विकास में जुटे हैं। चीनी वैज्ञानिकों ने न केवल पारंपरिक इलेक्ट्रॉनिक चिप्स, बल्कि प्रकाश आधारित (ऑप्टिकल) AI चिप्स पर भी महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है, जो पारंपरिक तकनीकों की तुलना में कहीं अधिक तेज और कुशल होने का दावा करती हैं।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चुनौतियों की जटिलता को देखते हुए इस लक्ष्य को पूरी तरह हासिल करने में 2030 तक का समय लग सकता है। यदि चीन इस स्वदेशी लिथोग्राफी तकनीक को व्यावसायिक स्तर पर सफल बनाने में कामयाब होता है, तो वह स्मार्टफोन, अत्याधुनिक हथियारों और सुपरकंप्यूटिंग के लिए जरूरी सेमीकंडक्टर के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा। यह तकनीकी विकास न केवल वैश्विक चिप बाजार की तस्वीर बदल देगा, बल्कि भविष्य की डिजिटल दुनिया में चीन के प्रभाव को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा सकता है।

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