
24 जून 2025 को पश्चिम एशिया में युद्धविराम की घोषणा जरूर की गई, लेकिन ज़मीनी हालात अब भी पूरी तरह सामान्य नहीं हो सके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार देर रात अपने एक संदेश में यह कहा कि इज़राइल और ईरान के बीच सैन्य टकराव को रोकने के लिए एक स्थायी युद्धविराम की सहमति बनी है। ट्रम्प ने इस पहल को शांति की दिशा में एक बड़ा कदम बताया और उम्मीद जताई कि इससे लंबे समय से चल रही दुश्मनी खत्म हो सकती है। उनके अनुसार, तेहरान और यरुशलम के बीच अब भविष्य में युद्ध की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए और दोनों देश आपसी सहमति से आगे बढ़ें, यही समय की मांग है।
हालांकि, ईरान की ओर से इस युद्धविराम को लेकर संदेह बना हुआ है। तेहरान ने स्पष्ट किया है कि उनके पास अभी तक कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं पहुंचा है और वे तभी हमले रोकेंगे जब इज़राइल पहले सैन्य कार्रवाई बंद करेगा। इसी बीच, इज़राइल के दक्षिणी हिस्सों में मिसाइल हमले की खबरें सामने आईं हैं, जिनमें कई लोगों की मौत और घायलों की पुष्टि की गई है। इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने साफ किया कि यदि युद्धविराम का उल्लंघन हुआ तो उनका देश पूरी ताकत से जवाब देगा।
इस घटनाक्रम का असर वैश्विक बाज़ारों पर भी देखने को मिला है। युद्धविराम की घोषणा के बाद तेल की कीमतों में गिरावट आई और शेयर बाज़ारों में सकारात्मक रुझान दिखा, लेकिन जानकारों का मानना है कि जब तक दोनों देशों के बीच पूर्ण रूप से सैन्य तनाव नहीं थमता, बाज़ार में स्थिरता नहीं आ सकती।
इस बीच भारत के लिए भी यह घटनाक्रम कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 25 से 27 जून के बीच चीन के क़िंगदाओ शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेंगे। इस बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-निरोधी रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा होने की संभावना है। वहीं, गृह मंत्री अमित शाह वाराणसी में आयोजित केंद्रीय जोनल काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता करेंगे, जहां आंतरिक सुरक्षा, सीमावर्ती राज्यों के बीच समन्वय और विकास से जुड़े मुद्दों पर विचार किया जाएगा।
इस समय पश्चिम एशिया का तनाव केवल दो देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव वैश्विक रणनीति, ऊर्जा आपूर्ति और राजनयिक संतुलन पर भी पड़ रहा है। ऐसे में भारत जैसे देश भी अपनी रणनीतिक तैयारियों को सक्रिय कर रहे हैं। ट्रम्प की घोषणा से उम्मीद ज़रूर बनी है, लेकिन इस संघर्षविराम की वास्तविकता और स्थायित्व पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं। शांति की राह लंबी और जटिल हो सकती है, लेकिन एक ठहराव की शुरुआत, चाहे अस्थायी ही सही, स्वागतयोग्य मानी जा सकती है।