
प्रधानमंत्री जन धन योजना ने देश में वित्तीय समावेशन की तस्वीर बदल दी है। अगस्त 2014 में शुरू हुई यह योजना आज 11 साल पूरे कर चुकी है और करोड़ों परिवारों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ चुकी है।
इन वर्षों में 56 करोड़ से ज्यादा खाते खोले गए हैं, जिनमें 2.68 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा है। खास बात यह है कि इनमें से आधे से ज्यादा खाते महिलाओं के नाम पर हैं और अधिकांश ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खुले हैं। इस वजह से गांव और छोटे कस्बों तक औपचारिक बैंकिंग सेवाएं पहुंचीं और लोग बचत तथा डिजिटल लेन-देन की आदत से जुड़े।
योजना के तहत खाताधारकों को शून्य शेष पर खाता, निःशुल्क रुपे कार्ड, दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर और ओवरड्राफ्ट सुविधा जैसे लाभ दिए जाते हैं। यही कारण है कि गरीब तबके के लोगों को अब छोटी-मोटी आर्थिक जरूरतों के लिए साहूकारों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने में भी इस योजना ने बड़ी भूमिका निभाई है। रुपे कार्ड और यूपीआई जैसे माध्यमों के इस्तेमाल ने गांव-गांव में नकदी रहित भुगतान को आसान बनाया है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिए सरकारी योजनाओं का पैसा भी अब सीधे लोगों के खातों में पहुंच रहा है, जिससे पारदर्शिता और सुविधा दोनों बढ़ी हैं।
जन धन योजना का असर केवल बैंक खाते खोलने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने लोगों में वित्तीय सशक्तिकरण और आत्मविश्वास की भावना भी जगाई है। यह पहल दिखाती है कि सही नीतियों और संकल्प से देश के सबसे वंचित नागरिकों को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है।
आज, 12वें वर्ष में कदम रखते हुए, यह योजना भारत के लिए समावेशी विकास का प्रतीक बन चुकी है और इसने साबित किया है कि हर नागरिक को वित्तीय आज़ादी और अवसर देने की दिशा में देश लगातार आगे बढ़ रहा है।