‘भोजशाला में जैन गुरूकुल परंपरा रही है’: जैन समाज

राजा भोज के नाम से पहचान बनाने वाली धार नगरी में स्थित भोजशाला में एएसआई का सर्वे जारी है। लेकिन इस पर जैन समाज ने दावा किया है।
‘भोजशाला में जैन गुरूकुल परंपरा रही है’: जैन समाज
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अब ऐतिहासिक भोजशाला पर जैन समाज (Jain samaj) ने भी दावा किया है। उन्होंने भोजशाला (bhojshala) को अपना धार्मिक स्थल बताते हुए इसके लिए विश्व जैन संगठन (Vishwa Jain Organization) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सलेक चंद जैन (Salek Chand Jain) ने मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ (Indore Bench) में याचिका दायर की गई है और कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के सर्वे में खोदाई के दौरान भोजशाला में जो मूर्तियां मिलीं हैं, वह जैन समाज के देवी-देवताओं और उनके तीर्थंकर की हैं।

एडवोकेट ने बताया कि याचिका में हमने दावा किया है कि भोजशाला में जैन धर्म से संबंधित अंबिका देवी की मूर्ति  (Ambika Devi Statue) मिली है। इसके अलावा वहां जैन गुरुकुल होने के भी प्रमाण मिलते हैं, क्योंकि एक शिलालेख ऐसा भी मिला है, जो बताता है कि यहां किसी समय जैन गुरुकुल (Jain Gurukul) भी था। कई देशी-विदेशी वरिष्ठ लेखकों ने अपनी पुस्तकों में सनातन और जैन समाज के देवी-देवताओं की मूर्तियों की आकृति के बारे में बताया है।

जानिए क्या है भोजशाला विवाद

एसआई द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी के बने भोजशाला को हिंदू समाज (Hindu Samaj) द्वारा वाग्देवी को समर्पित मंदिर माना जाता है। जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला मस्जिद (Kamal Maula Masjid) कहता है। 7 अप्रैल 2003 को एएसआई (ASI) द्वारा यहां एक व्यवस्था बनाई गई थी कि मंगलवार को हिंदू भोजशाला में पूजा कर सकते हैं और जबकि मुस्लिम (Muslim) शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा कर पाएंगे। यही व्यवस्था तब से चली आ रही है। इस मुद्दे पर धार्मिक तनाव कई बार पैदा हुआ है।

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