बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य की राजनीतिक ज़मीन को मज़बूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने विभिन्न आयोगों और बोर्डों में 13 नए अध्यक्षों की नियुक्तियां की हैं, जिनमें क्षेत्रीय संतुलन और जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया है। यह नियुक्तियां ना केवल गठबंधन राजनीति का संकेत हैं, बल्कि सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के प्रति नीतीश कुमार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाती हैं।
इन 13 नियुक्तियों में 8 अध्यक्ष जदयू से जुड़े चेहरों को बनाए गए हैं, जबकि सहयोगी दलों से जुड़े नेताओं को भी प्रतिनिधित्व मिला है। जदयू के वरिष्ठ नेता अशोक कुमार (बाल श्रमिक आयोग) और गुलाम रसूल बलियावी (अल्पसंख्यक आयोग) जैसे चेहरों को क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं। महादलित समाज से आने वाले मनोज ऋषि को महादलित आयोग, शिक्षाविद् नवीन कुमार आर्य को अतिपिछड़ा आयोग, मो. तसलीम परवेज को मदरसा बोर्ड का अध्यक्ष , डॉ अमरदीप को बाल सरंक्षण का दायित्व और अप्सरा मिश्रा को महिला आयोग की कमान देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के अंदर अनुभवी व निष्ठावान नेताओं को अवसर दिया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा से जुड़े सामाजिक आधारों को भी ध्यान में रखते हुए वरिष्ठ और अनुभवी चेहरों को जगह दी है — जैसे भूमिहार समाज से महाचंद्र सिंह को सवर्ण आयोग, ब्राह्मण समाज से मृत्युंजय झा को संस्कृत बोर्ड और कायस्थ समाज से रणवीर नंदन को धार्मिक न्यास बोर्ड की जिम्मेदारी मिली है। थारू जनजाति से आने वाले शैलेंद्र गढ़वाल को ST आयोग का अध्यक्ष बनाकर जनजातीय क्षेत्रों में भी एनडीए की पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया है।
वहीं, सहयोगी दलों के बीच संतुलन बनाने के लिए लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से मृणाल पासवान को अनुसूचित जाति (SC) आयोग का अध्यक्ष, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा से देवेंद्र कुमार मांझी को आयोग में उपाध्यक्ष, जदयू से प्रह्लाद कुमार को राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष और राष्ट्रीय लोक मोर्चा से अंगद कुमार को सदस्य बनाया गया है।
बिहार राज्य सरकार की यह नियुक्ति नीति जाति, क्षेत्र, अनुभव और संगठनात्मक निष्ठा के संतुलन पर आधारित है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं और आम मतदाताओं — दोनों को यह स्पष्ट संदेश गया है कि NDA सरकार में हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। सामाजिक न्याय की नींव पर टिकी यह रणनीति आगामी चुनाव में गठबंधन की सियासी ताकत को और मजबूती दे सकती है।