27 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एक बार फिर बिहार पहुंच रहे हैं। यह उनका दस दिनों में दूसरा दौरा है। इस दौरान वे अररिया, सारण और वैशाली में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों में शामिल होंगे। इससे पहले 18 सितंबर को शाह ने डेहरी ऑनसोन और बेगूसराय में 20 जिलों के पदाधिकारियों को संबोधित किया था।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों को पाँच ज़ोन में बाँटा है। 18 सितंबर को दो ज़ोन की बैठक हो चुकी, अब 27 सितंबर को शेष तीन ज़ोन की बैठक होगी। यह महज औपचारिक बैठकें नहीं हैं, बल्कि बूथ स्तर तक संगठन को मज़बूत करने और स्थानीय समीकरणों को साधने का प्रयास हैं।
अररिया, सारण और वैशाली की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि यहां मुस्लिम वोट, यादव बहुलता और पिछड़ा वर्ग का प्रभाव चुनाव को त्रिकोणीय बनाता है। अररिया सीमावर्ती जिला होने से निर्णायक भूमिका निभाता है, सारण लालू यादव का गढ़ है और वैशाली राजनीतिक चेतना का केंद्र माना जाता है। भाजपा का इन इलाकों पर फोकस विपक्ष के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश है।
अमित शाह अपने माइक्रो-मैनेजमेंट के लिए पहचाने जाते हैं। वे केवल भाषण नहीं देते बल्कि बूथ प्रबंधन, कार्यकर्ता प्रशिक्षण और स्थानीय मुद्दों पर सीधी पकड़ रखते हैं। यही कारण है कि उनकी सक्रियता विपक्ष के लिए नई चुनौती पेश कर रही है। महागठबंधन पहले से ही आंतरिक मतभेदों और नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। ऐसे में भाजपा का ज़ोनल मॉडल और शाह की रणनीति विपक्ष की धार को कमजोर कर सकती है।
बिहार की राजनीति हमेशा समीकरणों का खेल रही है—जाति, धर्म, विकास और नेतृत्व का मिश्रण। अमित शाह का यह दौरा भाजपा की गंभीरता का संकेत है। आने वाले दिनों में देखना होगा कि यह आक्रामक रणनीति महागठबंधन को कितना कमजोर करती है और जनता किस दिशा में राज्य की राजनीति को आगे बढ़ाती है।